Monday, March 11, 2013

दया और करुणा के कई अर्थ हैं


कहानी 1 : यह वीभत्स किस्सा पायाली नामक एक छोटे-से गांव का है, जो मप्र में जबलपुर से 150 किलोमीटर दूर मंडला जिले के नैनपुर तहसील का हिस्सा है। वर्ष 2012 में 26-27 दिसंबर की रात को 32 वर्षीय राजकुमार अपनी भतीजी को बहला-फुसलाकर सुनसान इलाके में ले गया। फिर उसके साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी। वह अगले दिन पकड़ा गया और 21 जनवरी को निचली अदालत में पेश किया गया। 
पक्ष-विपक्ष के तर्कों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार पांडे ने 5 फरवरी, 2013 को फैसला सुनाया। अपने फैसले में जज ने टिप्पणी की कि आरोपी ने 14 वर्षीय भतीजी का विश्वास तोड़ा है और इस जघन्य अपराध के लिए उसे मौत की सजा मिलनी चाहिए। एक दिन पहले ही इसी अदालत में एक दूसरे मामले की सुनवाई हुई थी। इसमें एक शिक्षक, जिसकी एक महीने बाद शादी होने वाली थी, अपनी भावी पत्नी को घुमाने ले गया और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की। लड़की के मना करने पर उसने चाकू से उसे मारने की कोशिश की और सुनसान इलाके में उसे अकेला छोड़कर चला आया। लड़की घायल थी और उसके शरीर से खून बह रहा था, लेकिन वह बच गई। इस मामले में जज ने टिप्पणी की कि शिक्षक का दायित्व युवा पीढ़ी को नया रास्ता दिखाना होता है, लेकिन आरोपी ने न केवल जघन्य अपराध किया है, बल्कि अपनी होने वाली पत्नी के साथ अभद्र व्यवहार किया है। इसके लिए उसे माफ नहीं किया जा सकता और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों पीडि़त परिवारों का कहना था कि न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार पांडे ने मामले की जल्दी सुनवाई और त्वरित फैसला सुनाकर उनके प्रति दया दिखाई है। 
कहानी 2 : मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोगों को मदर टेरेसा का बायां पांव देखने का मौका मिला था। उनके बाएं पैर का अगला हिस्सा विकृत था। उसमें गांठें पड़ी हुई थीं और अंगुलियां गलत दिशा में मुड़ी हुई थीं। क्या यह समस्या जन्मजात थी, किसी दुर्घटना का नतीजा थी या फिर किसी बीमारी के कारण ऐसा हुआ था। इनमें से कोई भी इसका कारण नहीं था। मदर टेरेसा जिस संस्था के लिए काम करती थीं, उसके पास जरूरतमंदों के बीच बांटने के लिए पुराने जूतों का जखीरा आता था। मदर टेरेसा इस जखीरे में जो सबसे खराब जूता होता था, वह अपने लिए चुनती थीं। जूते उनके पैरों में कितने भी बेतरतीब क्यों न हों, लेकिन वह अपने लिए वही रखती थीं। उनके ऐसा करने का कारण क्या था? दरअसल, वह जिनकी भलाई के लिए काम करती थीं और जिन्हें बेइंतहा प्यार करती थीं, उन्हें यथासंभव बेहतर चीजें उपलब्ध कराना चाहती थीं। वे चाहती थीं कि उन्हें खराब में से भी सबसे अच्छा मिले, न कि खराब में सबसे खराब। कई सालों तक लगातार ऐसा करने से उनके पैर विकृत हो गए। इस तरह दूसरों के लिए प्यार और करुणा दिखाते हुए उन्होंने खुद को अपंग बना लिया। 
कहानी 3 : एक दिन कुछ लोग अपने गुरु के पास जमा हुए और पूछा, इस दुनिया में जहां कुछ भी स्थायी नहीं है और जहां आप अपनी बनाई, खरीदी और सहेजी हुई चीजों की भी रक्षा नहीं कर सकते, आप खुश कैसे रह सकते हैं। हम सभी जानते हैं, भगवान के बनाए इस जीवन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन कम से कम हमारी सांसारिक संपत्तियों पर कुछ तो नियंत्रण होना चाहिए। गुरु ने एक गिलास उठाया और उन्हें दिखाते हुए कहा, यह गिलास मुझे किसी दूसरे ने दिया है। यह बड़े प्यार से मेरे लिए पानी रखता है और सूर्य की रोशनी में चमकता है। लेकिन किसी दिन ऐसा हो सकता है कि हवा इसे नीचे गिरा दे या मेरे हाथों से टकराकर यह नीचे गिर जाए। मुझे पता है यह गिलास पहले से ही टूटा हुआ है। इसलिए मैं इसका खूब मजा लेता हूं। 
फंडा यह है कि... 
दया कुछेक ऐसे शब्दों में शामिल है जिसके अलग-अलग समयों पर अलग-अलग अर्थ होते हैं। अपने लोगों, काम और कर्तव्यों से जुड़ाव के साथ भौतिक तत्वों के प्रति तटस्थता दया का वास्तविक मतलब है। आप कितने दयालु हैं, इसका पता खुद ही कीजिए।